आईडीएच और बेटर कॉटन भारतीय कृषि को पुनर्जीवित करने के लिए रिजेनेरेटिव खेती को दे रहा बढ़ावा

दुनिया की सबसे बड़ी कपास स्थिरता पहल आईडीएच और बेटर कॉटन ने रिजेनेरेटिव कृषि के दायरे और गुणों पर आम सहमति बनाने के साथ-साथ नीति, व्यवसाय, वित्त और अनुसंधान में कार्रवाई के अवसरों की पहचान करने के लिए विचारकों, अभिनेताओं और नवप्रवर्तकों को एक साथ लेकर आया। सहयोग, नवाचार और एक सक्षम वातावरण बनाकर भारत में पुनरुत्पादक कृषि को बढ़ावा देने के लिए नई दिल्ली में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया।

आईडीएच और बेटर कॉटन भारतीय कृषि को पुनर्जीवित करने के लिए रिजेनेरेटिव खेती को दे रहा बढ़ावा

दुनिया की सबसे बड़ी कपास स्थिरता पहल आईडीएच और बेटर कॉटन ने रिजेनेरेटिव कृषि के दायरे और गुणों पर आम सहमति बनाने के साथ-साथ नीति, व्यवसाय, वित्त और अनुसंधान में कार्रवाई के अवसरों की पहचान करने के लिए विचारकों, अभिनेताओं और नवप्रवर्तकों को एक साथ लेकर आया। सहयोग, नवाचार और एक सक्षम वातावरण बनाकर भारत में रिजेनेरेटिव खेती को बढ़ावा देने के लिए नई दिल्ली में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया।

कृषि भारत की अर्थव्यवस्था और समाज में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है जिससे 46 फीसदी से अधिक आबादी जुड़ी हुई है। इसमें से 86 फीसदी छोटे किसान हैं। कृषि क्षेत्र को पर्यावरणीय असंतुलन, मिट्टी की गुणवत्ता में कमी और पानी की कमी जैसी गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है जो इसकी दीर्घकालिक स्थिरता को खतरे में डाल रही हैं। जैसे-जैसे भारत की जनसंख्या बढ़ती जा रही है, फसल और खाद्य सुरक्षा तथा लाखों लोगों के लिए आजीविका सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण होता जा रहा है।

एक बयान में कहा गया है कि रिजेनेरेटिव कृषि मृदा स्वास्थ्य को पुनर्जीवित कर, जल संसाधनों को संरक्षित कर और जैव विविधता को बढ़ावा देकर एक स्थायी समाधान प्रदान करती है। साथ ही जलवायु परिवर्तन के प्रति उत्पादकता और लचीलापन भी बढ़ाती है। इस कार्यक्रम ने कृषक समुदायों, निजी क्षेत्र, नागरिक समाज और सरकार के प्रतिभागियों को सहयोग करने, अंतर्दृष्टि साझा करने और एक स्थायी और रिजेनेरेटिव कृषि भविष्य की दिशा में सार्थक प्रगति करने के लिए एक मंच प्रदान किया जो पर्यावरण की रक्षा करेगा और भारत में खाद्य और फाइबर (कपास) फसलों के उत्पादन में शामिल लाखों छोटे कृषक समुदायों की आजीविका में सुधार करेगा।

कार्यक्रम के दौरान आयोजित चर्चाओं में मिट्टी से कार्बन को अलग कर जलवायु परिवर्तन के मुद्दों को संबोधित करने, मिट्टी के क्षरण और पानी की कमी को रोकने और जैव विविधता के नुकसान को रोकने के लिए रिजेनेरेटिव कृषि के महत्व को दोहराया गया ताकि  खाद्य सुरक्षा में वृद्धि, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी और पारिस्थितिकी तंत्र को बहाल किया जा सके।

आईडीएच की ग्लोबल डायरेक्टर (टेक्सटाइल्स एंड मैन्युफैक्चरिंग) प्रमित चंदा ने सामूहिक कार्रवाई की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा, "इस आयोजन के माध्यम से, हम एक गतिशील, बहु-क्षेत्रीय नेटवर्क बनाने और भारत में कृषि के लिए अधिक टिकाऊ और रिजेनेरेटिव भविष्य के लिए हितधारकों को संगठित करने की आकांक्षा रखते हैं। इसमें यह सर्वोपरि है कि प्रत्येक हितधारक समूह इसे वास्तविक बनाने के लिए अपनी भूमिका पर विचार करे।"

बेटर कॉन के कंट्री डायरेक्टर (भारत) ज्योति नारायण कपूर ने आयोजन के महत्व पर टिप्पणी करते हुए कहा, "रिजेनेरेटिव कृषि पद्धतियों के उपयोग को बढ़ाना विश्व स्तर पर कृषक समुदायों के लिए महत्वपूर्ण होगा, यदि वे यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के उनके संचालन लचीले हों। यह आयोजन क्रॉस-कमोडिटी संबंधों को मजबूत करने और इस मुद्दे का समर्थन करने के लिए प्रतिबद्ध संगठनों को एकजुट करने में एक लंबा रास्ता तय करेगा।"

रिजेनेरेटिव कृषि भारतीय कृषि के सामने आने वाली गंभीर चुनौतियों का समाधान करने के लिए एक स्थायी समाधान प्रदान करती है। अपने संयुक्त प्रयासों के माध्यम से आईडीएच और बेटर कॉटन का लक्ष्य पुनरुत्पादक प्रथाओं को अपनाने में तेजी लाना, एक सक्षम वातावरण बनाना और भारत के कृषि क्षेत्र के पुनरुद्धार में योगदान देना है। आईडीएच और बेटर कॉटन पुनरुत्पादक कृषि पर बहु-हितधारक संवाद जारी रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं जिसमें खाद्य और फैशन उद्योगों के हितधारकों के साथ-साथ सरकारी संस्थाओं, नागरिक समाज संगठनों, शिक्षाविदों और वित्तीय क्षेत्र जैसे अन्य प्रमुख समूहों की भागीदारी शामिल है।

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